Pandurang Sadashiv Sane : एक महान शिक्षक और समाज सुधारक पंडुरंग सदाशिव साने, जिन्हें साने गुरुजी के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय शिक्षक, समाज सुधारक, और लेखक थे। उनका जन्म 24 दिसंबर, 1899 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के पालगड गांव में हुआ था। साने गुरुजी ने अपने जीवन में शिक्षा, समाज सुधार, और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
साने गुरुजी ने एक शिक्षक के रूप में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने अपने जीवन में कई स्कूलों में पढ़ाया, जिनमें अमलनेर के गणेश विद्यालय और नासिक के गणेश मंदिर विद्यालय शामिल हैं। साने गुरुजी एक कुशल शिक्षक थे, और उन्होंने अपने छात्रों में देशभक्ति, मानवतावाद, और सामाजिक न्याय की भावना को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया।
साने गुरुजी एक सामाजिक सुधारक भी थे। उन्होंने अस्पृश्यता, बाल विवाह, और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अभियान चलाया। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई।
साने गुरुजी एक प्रतिभाशाली लेखक भी थे। उन्होंने मराठी में कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें “शामची आई”, “विठ्ठल मंदिर”, और “महात्माजी” शामिल हैं। इन पुस्तकों में उन्होंने सामाजिक समस्याओं, भारतीय संस्कृति, और महात्मा गांधी के जीवन और कार्यों पर लिखा है।
साने गुरुजी की जयंती
साने गुरुजी का निधन 11 जून, 1950 को हुआ। उन्हें भारत के महान शिक्षकों और समाज सुधारकों में से एक माना जाता है।
साने गुरुजी की जयंती प्रतिवर्ष 24 दिसंबर को मनाई जाती है। इस दिन, उनके अनुयायी उनकी शिक्षाओं और कार्यों को याद करते हैं। कई जगहों पर साने गुरुजी की जयंती समारोह आयोजित किए जाते हैं।
गुरुजी की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने शिक्षा, समाज सुधार, और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी शिक्षाओं से हमें प्रेरणा मिलती है कि हम एक बेहतर समाज का निर्माण करने के लिए काम करें।
साने गुरुजी का संदेश था कि “शिक्षा से समाज का उत्थान होता है।” उन्होंने शिक्षा को एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में देखा जिसका उपयोग सामाजिक बुराइयों को दूर करने और एक न्यायपूर्ण समाज बनाने के लिए किया जा सकता है।