हम सनातन धर्म में भगवान के फोटो या मूर्ति की पूजा क्यों करते हैं? कई लोगों के मन में यह सवाल आता है कि बाकी सभी धर्मों में ऐसा नहीं होता। हमारे धर्म में ऐसा क्यों होता है? इसका कारण क्या है? आज हम इस विषय पर चर्चा करेंगे।
मूर्ति की पूजा का कारण
इसकी काफी सारी कहानियां हो सकती हैं। काफी सारी मान्यताएं हमारे वेदों में या ग्रंथों में लिखी हो सकती हैं कि हम मूर्ति की पूजा क्यों करते हैं? हम भगवान के फोटो की पूजा क्यों करते है? हमारे मंदिरों में फोटो क्यों होते हैं? उनको हम बिना फोटो के पूजा क्यों नहीं करते हैं? तो मैं आपको एक लॉजिकल रिजन बताता हूं। जितनी भी चीजें हमारे धर्म में है वो सारी चीजें हमारे शरीर के साथ अध्यात्मिक विज्ञान से कनेक्टेड है।
आसान भाषा में कहूं तो उसका कुछ ना कुछ लॉजिक होता है। आइए इसे एक उदाहरण के साथ समझते है। मान लीजिये मैं आपके सामने एक सेब रखता हूं और कहता हूं कि सेब के बारे में कुछ कहें। तो आप सेब को देखते हुए उसके बारे में बोलेंगे, यह आपकी प्रवृत्ति होती है। अब, यदि मैं किसी और के साथ भी ऐसा करूँ, उससे कहूं कि वह एक पत्थर के बारे में कुछ बताएं, तो वह आपके सामने नहीं देखकर बल्कि उस पत्थर के सामने देखकर बताएगा कि यह पत्थर काला है या वैसा कुछ। यह एक मानवीय प्रवृत्ति है। इसी तरह, हमारे मंदिरों में जब हम मूर्ति या फोटो के सामने खड़े होकर पूजा करते हैं, तो हमारा ध्यान उस मूर्ति या फोटो की ओर जाता है। हम कहीं और नहीं भटकते।
अक्सर लोग मंदिर में जाते हैं, मूर्ति को देखते हैं उसके बाद नीचे झुकेंगे और मूर्ति के सामने देखकर कुछ ना कुछ मंत्र बोलेंगे। जब आरती होता हैं, तो समूह एक साथ खड़ा होता है, लेकिन उनका ध्यान मूर्ति की ओर होता है। क्या कभी आपने देखा है कि वे आपस में बात कर रहे हो, स्कूल के बच्चे करते हैं। परन्तु जो भी बड़े बुजुर्ग हैं वो सब आरती के समय पर एक ही भगवान को ओर देख रहे होते हैं। वो चाहे फोटो के सामने हो या फिर मूर्ति के। इसका एक कारण ये भी है कि आपका ध्यान एक चीज पर बना रहता है।
आपको पता नहीं होगा लेकिन जब भी किसी भी मूर्ति की स्थापना होती है, तो उसके नीचे कुछ विशेष यंत्र रखे जाते हैं, जिनकी मदद से हम भगवान की एनर्जी को एकत्र करके पूजा करते हैं। यहाँ तक कि यंत्र टेक्नोलॉजी का हिस्सा होता है, जिसकी मदद से हम भगवान से आपसी संवाद करते हैं।
जैसा कि हमने उदाहरण दिया, यंत्र का उपयोग न केवल पूजा में होता है, बल्कि वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है। जिससे आप भगवान की एनर्जी को एक जगह पर इकट्ठा करके उसकी प्रार्थना कर सकें। तो जब मूर्ति कि स्थापना होती है तब मूर्ति के नीचे भी यंत्र को रखा जाता है। यही कारण है कि हमारी जो उर्जा है उसके उपर फोकस होता है जिससे हमारा ध्यान मूर्ति के ऊपर टिका रहता है। इसलिए मूर्ति की पूजा करते है । इसका दूसरा कारण ये होता है कि यह बहुत आसान तरीका होता है किसी भी इन्सान के दिल में ओमनी प्रेजेंस(omnipresence) जगाने के लिए ।
ओमनी प्रेजेंस : मान लीजिये मैं आपके सामने एक मूर्ति लाकर खड़ा कर दूं । आपने मोम की बनी मूर्ति देखे होंगे। वो मूर्ति आपको थोड़ी देर के लिए अन्दर से कुछ महसूस करता है। मान लीजिए सचिन तेंदुलकर जी का एक मोम की मूर्ति है म्यूजियम के अन्दर। अगर आप उनके साइड में खड़े होकर अगर सेल्फी लेते है तो आपको थोड़े समय के लिए आपके माइंड में साइकोलॉजिकल, आपको लगेगा कि वो वहां पर है इसी को ओमनी प्रेजेंस कहा जाता है।
इसी तरह जब आप मंदिर में जाते है, और आप अकेले होते है तो आपको ओमनी प्रेजेंस का आभास होता है। आपको ऐसा लगता है कि भगवान वहां पर है और आपको सुन रहे है, आपको देख रहे है जिसके कारण आप उनसे बात कर पाते है। यही कारण है कि हमारे लिए भगवान् के साथ कनेक्शन बनाना बहुत आसान हो जाता है। जिसकी वजह से हम भगवान को एक फोटो या मूर्ति की हम पूजा करते हैं।
आप देखना अगर आपके फोन के अंदर भगवान् का वॉलपेपर है और जब भी आप अपने फोन को ओपन करेंगे तो आपको लगेगा कि हाँ ये भगवान है। अगर आप कुछ गलत काम कर रहे हैं थोड़ा बहुत भी या अगर आप झूठ बोल रहे होंगे तो आपको यह अहसास हो जायेगा कि हाँ ये गलत है। फिर आप उस काम को वही रोक देंगे या फिर पहले आप फ़ोन को बंद करके अपने जेब में रख देंगे फिर उस काम को करेंगे। ऐसा बहुत सारे लोग भी करते है। ये हमारी प्रवृति है। इसी वजह से हम भगवान की मूर्ति की पूजा करते है और हमारी एनर्जी उन पर फोकस रहती है। इसके काफी सारी कहानियां हो सकती है। काफी सारे तत्व हो सकते हैं, जिनके बारे में हम अगले भाग ने विस्तार से चर्चा करेंगे ।