Ramana Maharshi Jayanti: हर साल 30 दिसंबर का दिन एक आध्यात्मिक अनुभूति लेकर आता है, वो है भगवान रमण महर्षि की जयंती। इस दिन हम उस महात्मा को याद करते हैं, जिन्होंने अपने सरल जीवन और गहन ज्ञान से लाखों लोगों को जीवन का सही रास्ता दिखाया।
तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई में जन्मे वेंकटरामण अय्यर का बचपन से ही आध्यात्मिकता के प्रति झुकाव था। 16 वर्ष की उम्र में एक आध्यात्मिक अनुभव ने उन्हें रामलिंग स्वामी बना दिया, जिसका अर्थ है “भगवान राम का रूप”। तिरुवन्नामलाई के अरुणाचल पर्वत के तल पर उन्होंने अपना आश्रम बनाया और वहीं समाधिस्थ हो गए।
रमण महर्षि का दर्शन सरल था, “अहं ब्रह्मास्मि” यानी “मैं ब्रह्म हूँ”। उनका मानना था कि आत्म-साक्षात्कार ही जीवन का अंतिम लक्ष्य है और इसे मौन ध्यान के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। उनके आश्रम में दुनिया भर से लोग आते थे, जिन्हें बस उनकी आंखों में झांकने से ही असीम शांति का अनुभव होता था।
रमण महर्षि ने शायद ही कभी उपदेश दिए, लेकिन उनकी उपस्थिति ही ज्ञान का सागर थी। उनके कुछ प्रसिद्ध कथनों में शामिल हैं:
- “जहाँ मन होता है, वहीं संसार होता है। मन को नियंत्रित करो, संसार स्वतः ही नियंत्रित हो जाएगा।”
- “खुशी मत ढूंढो, तुम स्वयं खुशी हो।”
- “जो कुछ प्राप्त किया जा सकता है, वह स्थायी नहीं हो सकता है। जो स्थायी है, उसे प्राप्त नहीं किया जा सकता है।”
उनके शब्दों की गहराई ने कई आध्यात्मिक गुरुओं और दार्शनिकों को प्रभावित किया। डॉ. राधाकृष्णन, अरविंद घोष और टी. एस. इलियट जैसे महान हस्तियों ने रमण महर्षि के ज्ञान की प्रशंसा की।